बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के ऐलान के साथ ही राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है। हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गया है और यह तय करने की कोशिश कर रहा है कि कौन-सा वोटबैंक उसके साथ रहेगा। इस बार भी मुकाबला सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों का है।
आरजेडी का पारंपरिक समीकरण अब सीमित असर में
राज्य की राजनीति में आरजेडी हमेशा से “MY समीकरण” (मुस्लिम + यादव) पर भरोसा करती रही है। बिहार की लगभग 18% मुस्लिम और 14% यादव आबादी मिलकर करीब 32% वोट शेयर तय करती है।
हालांकि, 2005 के बाद से आरजेडी इस समीकरण के दम पर सत्ता तक नहीं पहुंच पाई है। वजह यह है कि इस वोट प्रतिशत से आगे उसका विस्तार नहीं हो सका।
इसके अलावा, इन दोनों समुदायों के भीतर भी वोटों का बिखराव होता है, जिससे आरजेडी को पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

नीतीश कुमार ने बनाया नया “EBC समीकरण”
दूसरी ओर, नीतीश कुमार ने ओबीसी समाज के भीतर से अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को अलग पहचान दी।
राज्य की राजनीति में यह कदम “गेम चेंजर” साबित हुआ।
ईबीसी वर्ग में आने वाले मतदाता, जो पहले आरजेडी के पारंपरिक समीकरण से बाहर थे, अब बड़ी संख्या में नीतीश कुमार के साथ दिखाई देते हैं।
आंकड़ों के अनुसार, बिहार में EBC मतदाताओं की संख्या लगभग 36% है — यानी यह राज्य का सबसे बड़ा वोट ब्लॉक है।
किन जातियों का है ईबीसी ब्लॉक?
इस वर्ग में कुल 112 जातियां शामिल हैं, जिनमें कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा और कई छोटे समुदाय आते हैं।
राजनीतिक इतिहास में इस वर्ग की पहचान पहले सीमित थी, लेकिन नीतीश कुमार ने इन्हें पंचायतों में आरक्षण देकर राजनीतिक रूप से सशक्त किया।
इससे ईबीसी वोटरों की एकजुटता बढ़ी है।
यही वजह है कि नीतीश का यह वोट बैंक अब भाजपा के सवर्ण वोटों और दलित समुदायों के साथ एनडीए की मजबूत नींव बन गया है।
एनडीए का संभावित जातीय गणित
अगर मौजूदा समीकरण देखा जाए तो –
- सवर्ण वोटर भाजपा के साथ मजबूती से खड़े हैं।
- ईबीसी वर्ग नीतीश कुमार का पारंपरिक समर्थन आधार है।
- दलित और महादलित वोटर चिराग पासवान और जीतनराम मांझी के नेतृत्व में एनडीए के खेमे में हैं।
इन सबके जोड़ से एनडीए को बिहार में एक ठोस जातीय बढ़त मिलती दिख रही है।
हालांकि, इस समीकरण में एक्स-फैक्टर प्रशांत किशोर भी हो सकते हैं, जो कई वर्गों के मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
नतीजा तय करेगा जातीय संतुलन
बिहार का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां सत्ता का रास्ता जातीय समीकरणों से होकर गुजरता है।
अब देखना यह होगा कि आरजेडी का पारंपरिक “MY समीकरण” ज्यादा असर दिखाएगा या नीतीश-भाजपा का “EBC-सवर्ण-दलित गठजोड़”।
फिलहाल हर पार्टी अपने-अपने वोटबैंक को मजबूत करने में जुटी है और असली तस्वीर चुनावी नतीजों के बाद साफ होगी।